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Kavita Kosh से
आग बन कर सारे जंगल में भड़क सकता हूँ मैं
मैं अगर तुझको मिला सकता हूँ मेहरो मेहर-ओ-माह से
अपने लिक्खे पर सियाही भी छिड़क सकता हूँ मैं