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Kavita Kosh से
मुन्नी की आँखों का तारा
सेवानिवृत्त दद्दू कर्नल जगदीश
बाल्कनी में जा¯गग करते-करते हुलसेदृहुलसे--
नायकहीन अँधेरे वक्तों का उजियारा
आमलेट के मोटे पर्दे के पीछे से
बैंक मनीजर कुक्कू ने मुस्कान उठाईदृउठाई--
वह देवता है खुशियों का
सुन्दर सुबहों को जगानेवाला परीजाद
देखो, मछलियाँ उसकी देह की क्या कहती हैंदृहैं--
लिपिस्टिक बहू
बाथरूम के दरवाजे पर विजयपताका-सी लहराई
पर्दे के इस कोने से उस कोने तक दरिया-सी बहती हैंदृहैं--
मम्मू बोलीं
साठ साल की उजले दाँतोंवाली मम्मू
नए दौर का नया ककहरा सीख रही हैंदृहैं--
क ख ग घ च छ ट ठ, मेरी घटती उम्र का घटना
उसके ही शुभ-शिशु-आनन के दरशन का परताप
कीमत तो है शगुन
असल चीज है खुशी
खुशी जो खत्म न होदृहो--
डाक्यूमेंट्री फिल्मों के निर्माता
निशाचर
उस मुस्काते, उस उम्र घटानेवाले जादूगर नायक को
और हमें भी तो
रचा खुशी ने हीदृही--
बेडरूम से पर्दा फाड़
भैया बड़े कृष्ण भक्त
पोप्पर्टी डीलर, बोलेदृबोले--
खुशी की गागर धरो सहेज
शेष कृष्णा पर छोड़ो