भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदस्य:Umakant

2 bytes removed, 03:42, 14 अक्टूबर 2011
इस प्रेम की अविरल धारा में
 
इस प्रेम की अविरल धारा में , सांसों का क्रम बढ जाता है
जब बात जुबा पर आती है , दिल में सैलाब सा आता है
जब कहने को कुछ करता मन, होंठों पर के शब्द खो जाते है
इस बंद जुबा के अनकहे लफ्ज , बिन सुने ही समझे जाते है
शब्दों का अथाह सागर हृदय में है ,बोलने को भी मन करता है|
पर ये जुबा बंद हो जाती है , जब प्रेम अधिक हो जाता है
जब प्रेम अधिक हो जाता है , सांसो में कोई घुल जाता है
तब हृदय का निश्छल प्रेम , बरबस ही आखों से बह जाता है
3
edits