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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=अनीता अग्रवाल|संग्रह=}}<poem>एक बार फिर वहसोच रही हैअपनी जिंदगी के बारे मेंझुग्गी मेंबर्तन मांजने सेसुबह की शुरूआत करती हुईऔरटूटी खाट कीलटकती रस्स्यिों के झूले मेंरात को करवट बदलने के बीीचजीवित होने काअहसास दिलाने के लियेक्या कुछ है शेष</poem>