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कोई मिल जाये राह-ए-इश्क में हमदम अगर अच्छा
तो कट जाता है यारों ज़िन्दगानी का सफ़र अच्छा

इबादत गाह होती हैं ये कुटियाएँ गरीबों की
तेरे शीशे के महलों से मेरा मिटटी का घर अच्छा

ज़माने की खबर में सुर्खियाँ होंगी गुनाहों की
ज़माने की खबर रखने से मै तो बेखबर अच्छा

मिटा डाले जो खौफे-रहज़नी धरती के सीने से
कहीं से लाइएगा ढूंढकर वो राहबर अच्छा

'मनु' जो साथ दे साथी वही है लोग कहते हैं
मुहब्बत को खुदा समझे वही है हमसफ़र अच्छा</poem>
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