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सदस्य:Bhaskar

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कलम में भरी है स्याही
 
पर निब में नहीं आती
 
झटकना पड़ता था कई बार पहले
 
अब तो उसका भी असर नहीं
 
लगता है कुछ ज्यादा ही खफ़ा है मुझसे
 
उसके इस रवैये से दुखी बहुत हूँ
 
पर गुस्सा नहीं करता मैं
 
कुछ देर के लिए रख देता हूँ
 
कुछ देर बाद उठा के पता लगाता हूँ
 
करता हूँ प्रयास
 
कि हो जाये ठीक
 
हो भी जाती है पर ये बताकर
 
कि गलती मेरी थी
 
फिर आगे बढ़ने लगता है
 
हमारा प्रेम अनवरत....!
--[[सदस्य:Bhaskar|Bhaskar]] 08:57, 6 दिसम्बर 2011 (CST)................स्वरचित कविता
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