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|रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी
|संग्रह=मानसी / रामनरेश त्रिपाठी
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हे प्रभो ! आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए दीजिए।शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए कीजिए।लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें बनें।ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें व्रत-धारी बनें॥
प्रार्थना की उपर्युक्त चार पंक्तियाँ ही देश के कोने-कोने में गायी जाती हैं। लेकिन सच तो ये है कि माननीय त्रिपाठी जी ने इस प्रार्थना को छह पंक्तियों में लिखा था। जिसकी आगे की दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :