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|रचनाकार=अंगद जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'
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मेरे किशोर, मेरे कुमार!
अग्निस्फुलिंग, विद्युत् के कण, तुम तेजपुंज, तुम निर्विषाद,
तुम ज्वालागिरि के प्रखर स्रोत, तुम चकाचौंध, तुम वज्रनाद,
तुम तप-त्रिशूल की तीक्ष्ण धार!
मेरे किशोर, मेरे कुमार!
तुम नवजाग्रत उत्साह, तीव्र उत्कंठा, उत्सुक अथक प्राण,
तुम जिज्ञासा उद्दाम, विश्व-व्यापक बनने के अनुष्ठान,
तुम चिर-अतृप्ति, अविरत सुधार।
मेरे किशोर, मेरे कुमार!
अक्षय संजीवन-प्रद मद से कर अंतरतर भूरपूर, शूर,
तुम एक चरण में भय, चिंता, संदेह, शोक कर चूर-चूर,