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{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'
|संग्रह=जीवन-संगीत / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'
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:तुम आडंबर पर पद-प्रहार!
::मेरे किशोर, मेरे कुमार!
तुम यौवन-फल के पुष्प और शैशव-कलिका के हो विकास,तुम दो विश्वों के संधिस्थल पर आशा के उज्ज्वल प्रकाश;तुम जीर्ण जगत के नवचेतन, वसुधा के उर के अमर श्वास,:तुम उजड़े उपवन की बहार!::मेरे किशोर, मेरे कुमार!तुम वह प्राणद संदेश, बिखर जाते जिससे दुख, दैन्य, क्लेश,वह मस्ती, जिस पर असुर सुरा, सुर सुधा, गरल वारें महेश;तुम रवि की प्रखर किरण के निशि के उर में वह निर्भय प्रवेश,:जिससे कँप जाता अंधकार!::मेरे किशोर, मेरे कुमार!जो वन-पर्वत को चीर चले, तुम उस निर्झर के खर प्रवाह,जो कुश-कंटक को प्यार करे, उस राही की ‘अटपटी’ राह;जो तड़पे भोग-विलासों में, उस त्यागी उर की ऊष्ण आह,:तुम संकट-साहस पर निसार!::मेरे किशोर, मेरे कुमार!
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