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Kavita Kosh से
खाकर मार समय की मेरी बोझिल पेशानी
अगर नहीं गा पाई मेरी टूटन का संगीत
मेरा गीत न गा पाया यदि दर्द आदमी का
भाषा न बोल पसया हारी-थकी झुर्रियों की
लाख मिले मुझको बाज़ारू जीत कुछ नहीं
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