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07:36, 22 दिसम्बर 2011
कही कोई तो रास्ता कही जो जाता होगामदिरा
माना मंजिल पता नहीं कही आइना होगाआज मदिरा पीने को निकला
युही नहीं थी उसके चहरे पे उदाशी इतनीघर से एक पीने वाला
जरुर वो कही किसी हादशे से गुजरा होगा वोहो तो ढूंढ रहा है मदिरा
गमो का बोझ उठाये तपती रेत पे चलना गली गली और चौपला
...तुम्ही कहो इससे बड़ा क्या होसला होगाउस ने पुछा मुझ योगी से
यक़ीनन में बखुदी में भी पहचान लूँगा तुझेकहा मेलेगा मुझ को हाला
जब कभी कही मेरा तुझसे सामना होगा मै भी बोला उस जोगी से
में जेसा भी हू बेअदब बेतमीज ठीक हू क्यों ढूंढ रहा है तू हाला
ऊपर वाला मेरा हिसाब भी रखता होगाव्हओ बोला अब मुझ से
माना मंजिल पता नहीं कही आइना होगामांग रहा मेरा मन प्याला
अनीता मलिक . उस मन की प्यास भुझाने को ढूंढ़ रहा हूँ मै हाला उस मन को बार बार दर्पण में दिकथा है एक मदिरा का प्याला उस मदिरा में घुल मिलने को वंचित होता मन मेरा मदिरा की अब रहा में दिक्था मुझको अपना जीवन सारा उस जीवन को पास बुलाने को ढूंढ रहा हूँ मै हाला अब तू मुझ को हाला देदे या पहुचा दे मधुशाला क्यों ले रहा तू परीक्षा मुझ को पिने मे हाला हाला मेरा जीवन अमृत और मृतु हाले का प्याला पीने दे तू मुझ को अमृत और पिने दे मुझ को हाला अब उस जोगी की बाते सुनकर हाले को मन में रख कर " याद आ गए मुझ को बच्चन और अब मै बोला उस जोगी से" रहा पकड़ तू एक चला चल पा जयेगा मधुशाला आशुतोष शर्मा 9997060956