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तुम्हारी कविताओं से
मिलेंगे,
ढ़ेर ढेर सारा स्नेहऔर थोड़े से आंसुओं आँसुओं से
मन आँगन
सींचेंगे!
तब समय कहाँ था
ये बात
बार बार हमें
भंवर भँवर से तारती है,
मेरी राहों को
ज़रा और
संवारती सँवारती है!
कितने बड़े हो गए न
हम!
पर बीत कर भी न बीता
बचपन!तुम्हारा बात -बात पर
आश्वस्त करना भाता है,
सच! आज भी हमें
राहों में चलना नहीं आता है...
यूँ ही हमें
पग -पग पर
सँभालते रहना,
गायत्री -मन्त्र के उच्चारण -सा शुद्ध सात्विक
चन्दन की सुगंध लेकर
हो तेरा निरंतर बहना!!
राहों में फूलों का खिलना
यूँ ही बना रहे...
कष्ट -कंटक कुछ हो अगर
वो सब मेरे यहाँ रहे!
ये छोटी -सी मनोकामना है
और यही आशीष भी
जन्मदिन का उपहार
ये शब्दाशीश ही...
</poem>
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