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नौ बजे का सायरन / रमेश रंजक

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हम हुए हाँ और ना के यंत्र
चढ़ गया हलके मुलम्मे की तरह
जनतंत्र
कुर्सियों के सामने पानी
घंटी बजा कर इंजन
</poem>
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