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|रचनाकार=मख़्मूर सईदी
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खण्डर में फूल खिला था बस एक पल के लिए
गुज़र गए कई मौसम, कई रुतें बीतीं
मगर वो फूल खिला था जो एक पल के लिए
महक रहा है कहीं मेरे जिस्मो-जाँ में हनोज़
उसी का रंग है इस चश्मे-ख़ूफ़िशाँ में हनोज़
</poem>
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|रचनाकार=मख़्मूर सईदी
}}
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खण्डर में फूल खिला था बस एक पल के लिए
गुज़र गए कई मौसम, कई रुतें बीतीं
मगर वो फूल खिला था जो एक पल के लिए
महक रहा है कहीं मेरे जिस्मो-जाँ में हनोज़
उसी का रंग है इस चश्मे-ख़ूफ़िशाँ में हनोज़
</poem>