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Kavita Kosh से
तुम मेरी उँगलियों से
और मैं तुम्हारी उँगलियों से
छुऊँ बारिश्की बारिश की बूँद
देखो ! चमक रही है बिजली
सुनो ! गरज रहे हैं मेघ
औचक किसी भी पल झर सकती हैं बूँदें
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