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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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<poem>

लब पे भूले से मेरा नाम जो आया होगा
दिल की बेताब उमंगों को दबाया होगा

तुझपे अहसाँ न किया मुझपे बकाया होगा
पिछले जन्मों का कोई क़र्ज़ चुकाया होगा

जब्त होता ही नहीं अपने करम का उनसे
सैकड़ों बार तो अहसान जताया होगा

नाम लेकर न बुज़ुर्गों को पुकारो अपने
जाने किसने तुझे गोदी में खिलाया होगा

उनसे लड़ना है मुझे सोच रहे हैं अर्जुन
जिसने बचपन में कभी लड़ना सिखाया होगा

तेरी मुश्किल को बना देंगी दुआएं आसाँ
सर पे माँ-बाप का जब तक तेरे साया होगा

ज़ाहिरन उसने नहीं ख़्वाब की वादी में सही
कोई न कोई कभी गुल तो खिलाया होगा

काटकर साँप, सपेरे को बहुत रोया था
सोचकर उसने मुझे दूध पिलाया होगा

अश्क आँखों में उमड़ पड़ते रहे होंगे 'रक़ीब'
दर्दे-दिल जब भी कभी उसको सुनाया होगा
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