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मन के कारण जनम मरण है, मन राजा मन रंक,
मन चंगा शिवदीन लख पल में बने निशंक।
पल में बने निशंक संतक संत का सेवक सच्चा,
वही नर तन है धन्य और अच्छा ये अच्छा।
भव बन्धन बेडी कटे कटे पाप घनघोर,
मन मूरख माने नहीं, तब तक मिटे न खेद,
पढ़ि पुराण भरमा गये, केते पढ़ि-पढ़ि वेद।
केते पढ़ि-पढ़ि वेद, गुीा गुणी ज्ञानी जन डूबे,
चातुर डूब्या जाय, घणे अभिमानी डूबे।
संत शरण बिन ना बने, रीझें ना वह राम,