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आँखों में गुलसितान जितने महल बनाए थे, ख़्वाबों के, खो गए ख़ुश्बू भरे बदन वो, बाग़ गुलाबों के खो गए
हर बोलती ज़बान, कहीं जा के सो गई
क़िस्से वो इंक़लाबी, किताबों के खो गए
तक़दीर वारिसों को भी ग़ुरबत में ले गईतारीख़ मुफ़लिसी ने लिखी है कुछ इस तरह
मिलते नहीं निशान नवाबों के, खो गए
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