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|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
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पाँव उठ सकते नहीं मंज़िले -जानाँ के ख़िलाफ़
और अगर होश की पूछो तो मुझे होश नहीं
हुस्न से इश्क़ जुदा है न जुदा इश्क़ से हुस्न
कौन-सी शै है जो आग़ोश-दर-आग़ोश नहीं
</poem>
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पाँव उठ सकते नहीं मंज़िले -जानाँ के ख़िलाफ़
और अगर होश की पूछो तो मुझे होश नहीं
हुस्न से इश्क़ जुदा है न जुदा इश्क़ से हुस्न
कौन-सी शै है जो आग़ोश-दर-आग़ोश नहीं
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