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{{KKRachna
|रचनाकार=काज़िम जरवली
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>जब भी क़िस्सा अपना पढना,
पहले चेहरा चेहरा पढना ।
तन्हाई की धूप में तुम भी,
बैठ के अपना साया पढना ।
आवाज़ों के शहर में रहकर,
सीख गया हूँ लहजा पढना ।
हर कोंपल का हाल लिखा है,
शाख का पीला पत्ता पढना ।
भेज के नामे याद दिला दो,
भूल गया हूँ लिखना पढना ।
लोगों मेरी प्यास का क़िस्सा,
सदियों दरिया दरिया पढना ।
दीवारों पर कुछ लिखा है,
तुम भी अपना कूचा पढना ।
हिज्र की शब् में नम आँखों से,
धुंधला धुंधला सपना पढना ।
माज़ी का आएना रख कर,
खुद को थोडा थोडा पढना ।
मैं हूँ संगे मील की सूरत,
मुझसे मेरा रस्ता पढना ।
जीस्त का मतलब क्या है "काज़िम",
अपना अपना लिखना पढना ।। ---- काज़िम जरवली
</poem>
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|रचनाकार=काज़िम जरवली
|संग्रह=
}}
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<poem>जब भी क़िस्सा अपना पढना,
पहले चेहरा चेहरा पढना ।
तन्हाई की धूप में तुम भी,
बैठ के अपना साया पढना ।
आवाज़ों के शहर में रहकर,
सीख गया हूँ लहजा पढना ।
हर कोंपल का हाल लिखा है,
शाख का पीला पत्ता पढना ।
भेज के नामे याद दिला दो,
भूल गया हूँ लिखना पढना ।
लोगों मेरी प्यास का क़िस्सा,
सदियों दरिया दरिया पढना ।
दीवारों पर कुछ लिखा है,
तुम भी अपना कूचा पढना ।
हिज्र की शब् में नम आँखों से,
धुंधला धुंधला सपना पढना ।
माज़ी का आएना रख कर,
खुद को थोडा थोडा पढना ।
मैं हूँ संगे मील की सूरत,
मुझसे मेरा रस्ता पढना ।
जीस्त का मतलब क्या है "काज़िम",
अपना अपना लिखना पढना ।। ---- काज़िम जरवली
</poem>