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तेरा गाँव / ”काज़िम” जरवली

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<poem>मैंने अभी तो दूर से देखा है तेरा गाँव,
लगता है मेरे शहर से अच्छा है तेरा गाँव ।

दिन रात कोई ज़िकर वहीँ का किया करे,
मेरे लिए तो शाम सवेरा है तेरा गाँव ।

बस तू है, और तेरे ही जलवे हैं चार सूं,
तू चाँद है तो चाँद का हाला है तेरा गाँव ।

अच्छा अगर लगे तो यही कर के देख ले,
ये शहर मेरा तेरा है, मेरा है तेरा गाँव ।

कुछ भी नहीं पसंद तेरे गाँव के सिवा,
मेरे लिए तो सारा ज़माना है तेरा गाँव ।

जी चाहता है उम्र इसी में गुज़ार दूँ,
सारा जहान धुप है साया है तेरा गाँव ।

साँसों में है अजीब सी खुशबु बसी हुई,
कुछ दिन से मेरे दिल में धड़कता है तेरा गाँव ।

"काज़िम" जो, तू कहे तो वहीँ आके बस रहूँ,
मेरे दिलो दिमाग पे छाया है तेरा गाँव ।। -- काज़िम जरवली
</poem>