भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जुस्तजू में तिरी जो गए
कौन जाने कहाँ खो गए
 
सुन रहे थे कहानी तिरी
जागते जागते सो गए
 
कल समझता था अपना जिन्हें
आज बेगाने वो हो गए
 
दिल में अरमान पाले मगर
ऐसे बिखरे हवा हो गए
 
देर आने में हम से हुई
वो गए अब तो यारो गए
 
दूर होती रहीं मंजिलें
ऐ रवि रास्ते खो गए
</poem>