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Kavita Kosh से
मैंने ये चेहरा कभी देखा न था
आईने में अक्स वो मेरा न था
आँख खुलते ही हक़ीक़त खुल गई
दरमियान ए मा ओ तो परदा न था
ख़्वाब ही देखा किया दिन भर मगर
किस लिए तू रात भर सोया न था
कशमकश में ज़ीस्त की था कामराँ
जिसने अपना होसला खोया न था
उसकी आँखों को उम्मीद ए दीद थी
मर गए पर भी तो दम निकला न था
धंस गया जज़्बात की दलदल में क्यूँ
जिस का तन मैला था मन मैला न था
मैंने खोया और तूने पा लिया
ऐ रवि मुमकिन कभी ऐसा न था
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