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|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
|संग्रह=
}}
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गाँव की समझी कभी क़ीमत नहीं
रौशनी को शहर से फ़ुरसत नहीं
सत्य की ही जीत होगी अन्तत:
हर कोई इस बात से सहमत नहीं
क्या चुनावों का यही निष्कर्ष है ?
सज्जनों के साथ है जनमत नहीं
ठीक है वो लोग हैं भटके हुए
प्रेम है इसकी दवा, नफ़रत नहीं
हर ज़रूरत पर दुआएँ चाहिए
यूँ बुज़ुर्गों की भले इज़्ज़त नहीं
</poem>
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गाँव की समझी कभी क़ीमत नहीं
रौशनी को शहर से फ़ुरसत नहीं
सत्य की ही जीत होगी अन्तत:
हर कोई इस बात से सहमत नहीं
क्या चुनावों का यही निष्कर्ष है ?
सज्जनों के साथ है जनमत नहीं
ठीक है वो लोग हैं भटके हुए
प्रेम है इसकी दवा, नफ़रत नहीं
हर ज़रूरत पर दुआएँ चाहिए
यूँ बुज़ुर्गों की भले इज़्ज़त नहीं
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