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काँटे आए कभी गुलाब आए
रंग उड़ जाए उनके उड़ने लगा है चेहरे का जब भी मेरी वफ़ा के बाब<ref>किस्से</ref> आए
काम आए न कोई चतुराईज़िंदगी में अगर अज़ाब आए
दोस्त हो या मेरा वो दुश्मन हो
गिरनेवाली है घर की छत में दरार है “श्रद्धा”
ऐसे आलम में कैसे ख़्वाब आए
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