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मेरी जड़-अनगढ़ वीणा वाणी कोहे स्वरदेवी, अपना स्वर दोदे!
अंदरभीतर-बाहर घना अँधेरा
दूर-दूर तक नहीं सबेरा
दिशाहीन है मेरा जीवन
ममतामयी, उजाला भर दोदे!
मानवता की पढूँ ऋचाएं
तभी रचूं रचूँ नूतन कविताएँ एकनिष्ठ मन रहे सदा माँ ,करुणाकर ऐसी मति आशीषों का कर दोसिर धर दे!
जानें अपने को पहचानें-जानें
'सत्यम्‌ शिवम्‌ सुन्दरम्‌' मानें
जागृत हो मम प्रज्ञा पावन
हंसवाहिनी, ऐसा वर दोदे!
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