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Kavita Kosh से
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जब मिटा कर नगर गया होगा
खुद से मिलते ही डर गया होगा
अब न ढूंढो वो कि सुबह का भूलाशाम होते ही घर गया होगा
खिल उठी फिर से इक कली "श्रद्धा"
ज़ख़्म-ए-था दिल कोई में, भर गया होगा
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