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कुछ शेर-4 / अर्श मलसियानी

209 bytes removed, 03:54, 24 मार्च 2012
<poem>
(1)
ऐ सितमगर<supref>1जुल्म ढानेवाला</supref> मेरे इस हौसले की दाद दें,सामने तेरे अगर फरियाद<supref>2शिकायत, परिवाद, न्याय-याचना, सहायता के लिए पुकार</supref> कर लेता हूँ मैं।
(2)
नहीं है राज कोई राज दीदावर<supref>3किसी चींज के गुण-दोष अच्छी तरह समझने वाले</supref> के लिये,
नकाब पर्दा नहीं शौक की नजर के लिये।
(3)
बला<supref>4मुसीबत, विपत्ति, आस्मानी मुसीबत</supref> है कहर है आफत है फित्ना है कयामत है,
हसीनों की जवानी को, जवानी कौन कहता है?
(4)
मिल गया आखिर निशाने-मंजिले-मकसूद मगर,
अब यह रोना है कि शौके-जुस्तजू<supref>5तलाश</supref> जाता रहा।
(5)
यह किसने कह दिया गुमराह कर देता है मैखाना<supref>6शराबखाना</supref>,खुदा की फजल<supref>iमेहरबानी, कृपा</supref> से इसके लिए मंदिर हैं, मस्जिद हैं।{{KKMeaning}}
</poem>
1 सितमगर - जुल्म ढानेवाला 2.फरियाद - (i) शिकायत, परिवाद (ii) न्याय-याचना (iii) सहायता के लिए पुकार, दुहाई
3.दीदावर - जोहरी, पारखी, किसी चींज के गुण-दोष अच्छी तरह समझने वाले 4.बला - मुसीबत, विपत्ति, आस्मानी मुसीबत
5.जुस्तजू - तलाश 6.मैखाना - शराबखाना 7.फजल - मेहरबानी, कृपा
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