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जिजीविषा / सुकीर्ति गुप्ता

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}}
<poem>
 
(1)
 
खिड़की से झांकती
 
पीपल की नरम हरी पत्तियां
 
वायु के ताजे झोंके सी
 
बेचैनी छीन
 
स्नेह भरती हैं,
 
हवा-पानी धरती
 
और मनुष्य का प्यार
 
पनप जाती हैं शाखें
 
छत की फांक, काई भरी दीवार, पाइप
 
सम्बन्धों की गहराई माप
 
हरीतिमा खिलखिलाती है।
 
(2)
झुकी कमर
उसे सड़क पार जाना है।
</poem>
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