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स्याम सुंदर नँद-कुँवर पर, सूर बलि-बलि जाइ ॥<br><br>
भावार्थ :-- (श्यामसुंदर) अपने चरणों को चलाते - नाचते हुए छोटे-से हाथ पर छोटी सी रोटी माँगते हैं - (और कहते हैं) मैया ! थोड़ा-सा माखन दे!' स्वर्णभूमि पर रत्न (नीलम) की रेखा जैसे खिंच गयी हो, इस प्रकार वे दौड़े और मथानी की रस्सी पकड़ ली । इससे (कहीं फिर समुद्र-मन्थन न करें, यह सोचकरसोच कर) मन्दराचल काँपने लगा, शेषनाग शंकित हो उठे और समुद्र व्याकुल हो गया । छोटे-से मुखसे मुख से थोड़े-थोड़े शब्द तुतलाते हुए बोलते हैं । माता यशोदा के ये प्राण हैं, जीवन हैं, मैया ने इन्हें हृदय से लिपटा लिया । (माता ने बलैया लेते हुए कहा-) `मेरे चित्त को मोहित करने वाले मेरे नन्हें लाल! तुम्हारी सब आपत्ति-विपत्ति मुझे लग जाय ।' सूरदास तो इस नन्दनन्दन नन्द-नन्दन श्यामसुन्दर पर बार-बार न्योछावर है ।
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