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उलीच उलीच कर
 
मैंने एक दिन
 
खाली कर
 
दिया था कुंआं --
 
लगता था
 
अब कुछ
 
उभर कर
 
न आएगा -
 
खाली- बाल्टी
 
खाली घडा
 
ऊपर आएगा ...
 
पर देखा
 
रोज शतदल की
 
नाक की तरह
 
उल्टा -दीख कर भी
 
घडा
 
सीधा  -सीधा
 
फिर भर कर
उभर आता है ....
उभर आता है ....</Poem>
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