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भोजन करि बन कौं चले, सूरज बलि जाई ॥<br><br>
माता आनन्दपूर्वक कह रही है--मेरे लाड़िले, गोकुलको सुखदेने गोकुल को सुख देने वाले लाल तुम जागो!कुँवर कन्हाई ! उठो, तुम्हारे लिये मैं मक्खन, दूध दही और मिश्री ले आयी हूँ । उठकरपकवान उठकर पकवान और मिटाइयोंका मिटाइयों का भोजन करो । सबेरेसे सबेरे से ही सब सखा द्वारपर द्वार पर खड़े पुकार रहे हैं कि `श्यामसुन्दर! देखो , सूर्य दिखायी देने लगा अब वनको वन को चलो ।' (माताकीमाता की) यह बात सुनकर श्रीयदुनाथ अत्यन्त आनन्दसे आनन्द से जागे और भोजन करके वनको वन को चल पड़े । सूरदास इनपरबलिहारी इन पर बलिहारी जाता है ।