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सूर स्याम कछु कहत-कहत ही बस करि लीन्हें आइ निंदरिया ॥<br>
भावार्थ :-- माता कहती हैं, `कन्हाई ! सायंकाल हो गया, अब आ जाओ । यह बहुतकुसमयमें बहुत कुसमय में तुम गायों के बीचमें बीच में खड़े हो । (इस समय गायें बछड़ोंको पिलानेके बछड़ों को पिलाने के लिये उछलकूद करती हैं, कहीं चोट न लग जाय) तुम तनिक भी लड़कपन नहीं छोड़ते, अब तो स्वच्छ पलंगपर पलंग पर सो रहो ।' यह बात सुनते ही श्यामसुन्दर आ गये । माता यशोदाजीने यशोदा जी ने दौड़कर उन्हें गोदमें गोद में उठा लिया । अच्छी चाँदनी फैल रही थी, अपने पुत्रको पुत्र को लेकर (माता) आँगनमें आँगन में ही (पलंगपरपलंग पर) लेट गयीं ! सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर कुछ बातें करते ही थे कि निद्राने निद्रा ने आकर उन्हें वशमें वश में कर लिया । (बातें करते-करते वे सो गये ।)