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ताँका पढ़ने व लिखने का अभ्यास हमें प्रसन्नता से पूर्णता तक , अन्तर्दृष्टि से व्यापकता तक, उत्तेजनशीलता से आत्मिक प्यार तक ले जाता है । इस अवस्था को पाने के लिए हमें अपने -आप में कुछ बदलाव लाना जरूरी है जैसे कहीं सरसरी दृष्टि डालने से एकटक देखने तक , आभास से अन्वेषण ( खोज) तक , केवल जानने से परिप्रेक्ष्य के अवलोकन और विश्लेषण तक । लेखन का जो आधार होता, जो चिन्तन की पृष्ठभूमि होती है;वही परिप्रेक्ष्य होता है , दृष्टिकोण से थोड़ा व्यापक , मगर सन्दर्भ के ज़्यादा निकट ।
ताँका अनुभव की कविता है ,जिसमें उपमान योजना प्रयोग उसे और भी गहन और सम्प्रेषणीय बना देता है । यह हमें संज्ञा के काव्य से क्रिया के काव्य तक ले जाता है, जहाँ स्पष्ट वाणी से व्यक्त किया जाता है । सरल शब्दों में कहा जाए तो यह धागे से कपड़े तक का, बीज से पौधे तक , रेखाओं से रंगदार चित्र तक या स्वरों से संगीत तक का सफ़र है ।
डॉ [[सुधा गुप्ता]] जी ने सन् 2000 में ताँका लिखना शुरू किया था। इनके 56 ताँका[[ ‘बाबुना बाबुना जो आएगी’आएगी]](2004) में तथा 61ताँका ‘कोरी माटी के दिये’(2009) संग्रह में छपे।जनवरी 2009 में डॉ उर्मिला अग्रवाल का ताँका संग्रह-‘अश्रु नहायी हँसी’(96 ताँका) तथा 2010 में ‘यायावर मन’ (108 ताँका)प्रकाशित हुआ । इसके बाद 2011 में डॉ सुधा गुप्ता का स्वतन्त्र ताँका संग्रह ‘सात छेद वाली मैं’ आया है । इसमें इनके 153 ताँका संगृहीत हैं । इस क्षेत्र में ये तीनों संग्रह उल्लेखनीय ही नही पठनीय भी हैं। [[रामेश्वर काम्बोज हिमांशु[[ ]] तथा डॉ. हरदीप कौर सन्धु का ताँका - चोका संग्रह ' मिले किनारे' (2011),) और रेखा रोहतगी का ताँका -हाइकु संग्रह ' अथ से इति' ( 2011) में प्रकाशित हुए हैं । यह सभी संकलन उल्लेखनीय ही नहीं पठनीय भी हैं । मनोज सोनकर का संग्रह ' ताँका -तरंग ( 2011) भी प्रकाशित हुआ है।‘हिन्दी हाइकु’ ब्लॉग पर पहले से ही ताँका प्रकाशित किए जा रहे हैं । [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'']] जी तथा मैंने सितंबर 2011 में [[ http://trivenni.blogspot.in/ - त्रिवेणी ']] ब्लॉग शुरू किया है। इस ब्लॉग पर हिन्दी साहित्य की तीन विधाओं - हाइगा - ताँका - चोका में साहित्य प्रकाशित किया जा रहा है । इसके माध्यम से विश्व भर के रचनाकारों को ताँका से जोड़ने का प्रयास किया गया है जिनमें से 29 कवियों के ताँका हैं।
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