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|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
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आप भी किस हवा में हैं, शमशेर !

आप और शेर का यह कारोबार ! !


माना, माना, माना कि शेरो-फ़ने लतीफ़

आप की जान है मगर सरकार--

आप की जान की है क्या क़ीमत !

आप जैसे पड़े हुए हैं हज़ार !


और ही मंज़िलें हैं ये, साहब

जिनको आसाँ नहीं है करना पार !

आपकी राह दूसरी है, जनाब

शाहराहों से आपको सरोकार ?

और ही - सी हैं आपकी गलियाँ !

और ही - से हैं कूचओ - बाज़ार


देस तो एक ही है हम सब का;

मगर इसमें है एक ही तक़रार

किसका पहले है किसका पीछे है

कौन बा-कार कौन है बेकार;

कौन आगे है और मौज में है--

कौन पीछे है और ख़स्तओ-ज़ार


कहाँ बंदा ग़रीब ख़ानाबदोश

कहाँ आली-जनाब, आली बेक़ार !

हम तो 'शमशेर' वह फ़साना हैं

जिसका सुनना - सुनाना है बेकार !
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