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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : गरीबी ! तू न यहाँ से जाकाश ऐसा होता .. ('''रचनाकार:''' [[कोदूराम दलितलीना टिब्बी]])</div>
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गरीबी ! तू न यहाँ से जाकाश ऐसा होताएक बात मेरी सुन, पगलीकि ईश्वर बैठ यहाँ पर आ,मेरे बिस्तर के पास रखेगरीबी तू न यहाँ पानी भरे गिलास के अन्दर से जाबैंगनी प्रकाश पुंज-सा अचानक प्रकट हो जाता...
चली जाएगी तू यदि तो दीनों के दिन फिर जाएँगेकाश ऐसा होतामजदूर-किसान सुखी बनकर गुलछर्रे खूब उड़ाएँगेकि ईश्वर फिर कौन करेगा पूँजीपतियों ,शाम की इतनी परवाहअजान बन करगरीबी तू न यहाँ हमारे ललाट से जादिन भर की थकान पोंछ देता...
बेमौत मरेंगे बेचारे ये सेठ, महाजन, जमीनदारकाश ऐसा होताधुल जाएगी यह चमक-दमक, ठंडा होगा सब कारबारकि ईश्वर रक्षक बनकर, भक्षक मत आसूँ की एक बूंद बन, तू इन पर जुलुम न ढाजातागरीबी तू न यहाँ से जाजिसके लुढ़कने का अफ़सोसहम मनाते रहते पूरे-पूरे दिन...
सारे गरीब नंगे रहकर दुख पाते हों तो पाने देकाश ऐसा होतादाने-दाने के लिए तरस मर जाते हों, मर जाने देकि ईश्वर यदि मरे–जिए कोई तो इसमें तेरी गलती क्यारूप धर लेता एक ऐसे पाप कागरीबी तू हम कभी न यहाँ से जाथकते जिसकी भूरी-भूरी प्रशंसा करते...
यदि सुबह-शाम कुछ लोग व्यर्थ चिल्लाते हों, चिल्लाने देकाश ऐसा होता’हो पूँजीवाद विनाश’ आदि के नारे इन्हें लगाने देकि ईश्वर है अपना ही अब राज-काज, तू गीत खुशी के गाशाम तक मुरझा जाने वाला गुलाब होतातो हर नई सुबहगरीबी तू न यहाँ से जाहम नया फूल ढूंढ कर ले आया करते...
यह अन्य देश नहीं, भारत है, समझाता हूँ मैं बार-बारकर मौज यहीं रह करके तू, हिम्मत न हार, हिम्मत न हारमैं नेक सलाह दे रहा हूँ, तू बिल्कुल मत घबरागरीबी तू न यहाँ से जाकाश ऐसा होता... केवल धनिकों को छोड़ यहाँ पर सभी पुजारी तेरे (लीना टिब्बी अरबी भाषा की जानी-मानी कवियत्री हैंतू भी तो कहते आई है ’ये मेरे हैं, ये मेरे हैं’सदियों से जिनको अपनाया है, उन्हें न अब ठुकरागरीबी तू न यहाँ से जा... लाखों कुटियों के बीच खड़े आबाद रहें ये रंगमहलआबाद रहें ये रंगरलियाँ, आबाद रहे यह चहल-पहलतू जा के पूंजीपतियों पर, आफ़त नई न लागरीबी तू न यहाँ से जा... ये धनिक और निर्धन तेरे जाने से सम हो जाएँगेतब तो परमेश्वर भी केवल समदर्शी ही कहलाएँगेफिर कौन कहेगा ’दीनबंधु’, उनको तू बतलागरीबी तू न यहाँ से जा...(रचनाकाल लगभग १९६५)
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