भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatKavita}}
<poem>
कानन का सौन्दर्य लूट कर सुमन इक_े इकट्ठे कर के
धो सुरभित नीहार-कणों से आँचल में मैं भर के,
देव! आऊँगा तेरे द्वार-