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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश अश्क }} {{KKCatGhazal}} <poem> अब तक का इतिह...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=महेश अश्क
}}
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<poem>
अब तक का इतिहास यही है, उगते हैं कट जाते हैं
हम जितना होते हैं अक्सर, उससे भी घट जाते हैं
तुम्हें तो अपनी धुन रहती है, सफ़र-सफ़र, मंज़िल-मंज़िल
हम रस्ते के पेड़ हैं लेकिन, धूल में हम अट जाते हैं
लोगों की पहचान तो आख़िर, लोगों से ही होती है
कहाँ किसी के साथ किसी के बाज़ू-चौखट जाते हैं
हम में क्या-क्या पठार हैं, परबत हैं और खाई है
मगर अचानक होता है कुछ और यह सब घट जाते हैं
अपने-अपने हथियारों की दिशा तो कर ली जाए ठीक
वरना वार कहीं होता है, लोग कहीं कट जाते हैं
</poem>
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|रचनाकार=महेश अश्क
}}
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अब तक का इतिहास यही है, उगते हैं कट जाते हैं
हम जितना होते हैं अक्सर, उससे भी घट जाते हैं
तुम्हें तो अपनी धुन रहती है, सफ़र-सफ़र, मंज़िल-मंज़िल
हम रस्ते के पेड़ हैं लेकिन, धूल में हम अट जाते हैं
लोगों की पहचान तो आख़िर, लोगों से ही होती है
कहाँ किसी के साथ किसी के बाज़ू-चौखट जाते हैं
हम में क्या-क्या पठार हैं, परबत हैं और खाई है
मगर अचानक होता है कुछ और यह सब घट जाते हैं
अपने-अपने हथियारों की दिशा तो कर ली जाए ठीक
वरना वार कहीं होता है, लोग कहीं कट जाते हैं
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