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/* ग़ज़ल संग्रह */
बाँटते -बाँटते थक जाओगे ये दफ़्तर सरकारी है
अतुल अजनबी का पहला ग़ज़ल संग्रह "[[शजर मिज़ाज" / अतुल अजनबी|शजर मिज़ाज]] (नागरी) 2005 में शिल्पायन प्रकाशन दिल्ली से आया जिसने ग़ज़ल से मुहब्बत करने वालों को एक नायाब तोहफा दिया। उनका दूसरा मज़्मुआ- ए- क़लाम उर्दू में " [[बरवक़्त / अतुल अजनबी|बरवक़्त " ]] 2010 में मंज़रे -आम पे आया।
[http://books.google.co.in/books?id=ehNH9mWwFyEC&pg=PA112&lpg=PA112&dq=%E0%A4%85%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B2+%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%AC%E0%A5%80&source=bl&ots=P1ucL2ShRK&sig=mI2hW2nMg8T4JeLBCQpCVOTx-l4&hl=en&sa=X&ei=4cEKUNeuCcjOrQeblKTICA&ved=0CGsQ6AEwCA#v=onepage&q=%E0%A4%85%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B2%20%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%AC%E0%A5%80&f=false शजर (पेड़) के मिज़ाज को अतुल ने बड़ी गहराई से समझा और दरख़्त को अपना मौज़ूं और प्रतीक बना के ख़ूबसूरत शे'र कहे]