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{{KKRachna
|रचनाकार=गीत चतुर्वेदी
|संग्रह=आलाप में गिरह / गीत चतुर्वेदी
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<Poem>
शकरपारे की लम्बी डली को छाँपे चिपकी चीटियाँ हैं
या सन 47 में बँट गई ज़मीन के उस पार से आतीठसाठस कोई ट्रेन००
सबसे बड़ा छल इतिहास के साथ हुआ
इतिहास के नाम पर इतिहास के खिलाफ़
याददाश्त बढ़ाने की दवा बहुत बन गईगईंकोई ऎसी ऐसी दवा बनाओ जिससे भूल जाया जाए सब००उस प्रोटान प्रोटॉन की मज़बूरी समझो
जो चाहे जितनी बगावत कर ले
रहना उसे इलैक्ट्रान इलेक्ट्रॉन के दायरे में ही है
निरन्तर भटकन की अभिशप्त गति से
अपने ही पानी में डूब गया
कोई बदबख़्त समुद्र
एक दिन जब मर चुकी होगी मेरी भाषा
किस भाषा में पढ़ोगे तुम मेरी भाषा का मर्सिया
इसकी तस्वीर पर टंगे टँगे फूल को कहोगेकिस भाषा में कौन -सा फूल?
</poem>