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शिकवा / इक़बाल

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थी तो मौजूद अज़ल <ref>आदि</ref> से ही तेरी ज़ात-ए-क़दीम <ref> पुराने प्राणी </ref>
फूल था ज़ेब-ए-चमन, पर न परेशान थी शमीम<ref> सुगंध</ref> ।
शर्त-ए-इंसाफ़ है ऐ साहिब-ए-अल्ताफ़-ए-अमीं अमीम <ref>सार्वभौमिक, स्र्वोपरि. यहाँ पर मतलब ईश्वर या अल्लाह से है ।</ref> ।बू-ए-गुल फैलती किस तरह जो होती न नसीम <ref> पवन </ref>।
हमको जमहीयत-ए-ख़ातिर ये परेशानी थी
हमसे पहले था अजब तेरे जहाँ का मंज़र ।
कहीं मस्जूद<ref>पूज्य (जिसका सजदा किया जाय)</ref> थे पत्थर, कहीं माबूद<ref>पूज्य</ref> शजर <ref>पेड़</ref> ।
ख़ूगर-ए-पैकर-ए-महसूस <ref>महसूस कर सकने वाली आकृति को (पूजने की) आदी </ref> थी इंसा की नज़र ।
मानता फ़िर अनदेखे खुदा को कोई क्यूंकर ?
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