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हम कृती नहीं हैं / अज्ञेय

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कृति नहीं हैः
हों, बस इतने भर को हम
आजीवन तपते-जलते रहे—रह गये।  '''दिल्ली (बस में), 26 अक्टूबर, 1956'''</poem>
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