भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
क्या सचमुच मुझे पता है मैं क्या चाहता हूँ<br><br>
जैसे चाँद चांद पर मुझे कविता लिखनी है<br>
वैसे ही लिखनी है उस पर भी<br>
मज़दूरों के साथ बिताई एक शाम की<br>
पार करती असंख्य वन-पर्वत<br>
बीहड़ों से बीहड़ इंसानी दरारों <br>
को पार करती चाँदनीचांदनी<br><br>
उस पर कविता लिखते हुए <br>
लिखता हूँ तांडव गीत<br>
तोड़ दो, तोड़ दो, सभी सीमाओं को तोड़ दो।<br><br>