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वह जो बार-बार पास आता है / लाल्टू

No change in size, 19:07, 7 अक्टूबर 2007
क्या सचमुच मुझे पता है मैं क्या चाहता हूँ<br><br>
जैसे चाँद चांद पर मुझे कविता लिखनी है<br>
वैसे ही लिखनी है उस पर भी<br>
मज़दूरों के साथ बिताई एक शाम की<br>
चाँदनी चांदनी में लौटते हुए <br>एक चाँद चांद उसके लिए देखता हूँ<br><br>
चाँदनी चांदनी हम दोनों को छूती<br>
पार करती असंख्य वन-पर्वत<br>
बीहड़ों से बीहड़ इंसानी दरारों <br>
को पार करती चाँदनीचांदनी<br><br>
उस पर कविता लिखते हुए <br>
लिखता हूँ तांडव गीत<br>
तोड़ दो, तोड़ दो, सभी सीमाओं को तोड़ दो।<br><br>
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