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Kavita Kosh से
ज़िन्दगी को तुम अपनी शर्तों से जीते हो
इश्क से बहुत दूर रहते हो
या फिर इश्क हो न जाये
शायद इस बात से डरे रहते हो,
मुमकिन है तुम्हें इश्क
वैसे ही नापसंद हो जैसे आँसू
ग़ैरों के दर्द को महसूस करना और बात है
दर्द को ख़ुद जीना और बात,
एक बार तुम भी जी लो
मेरी ज़िन्दगी
जी चाहता है
तुम्हे श्राप दे ही दूँ
''जा तुझे इश्क हो''!
(फरवरी 29, 2012)
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