भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
ज़िन्दगी को तुम अपनी शर्तों से जीते हो
इश्क से बहुत दूर रहते हो
या फिर इश्क हो न जाये
शायद इस बात से डरे रहते हो,
मुमकिन है तुम्हें इश्क
वैसे ही नापसंद हो जैसे आँसू
ग़ैरों के दर्द को महसूस करना और बात है
दर्द को ख़ुद जीना और बात,
एक बार तुम भी जी लो
मेरी ज़िन्दगी
जी चाहता है
तुम्हे श्राप दे ही दूँ
''जा तुझे इश्क हो''!
 
(फरवरी 29, 2012)
 
 
</Poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits