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Kavita Kosh से
किसका था वह हाथ सदा जो आड़े-आड़े आया !
अपना ही प्रतिबिम्ब, मोह, भ्रम,स्वप्न कहूँ या माया
मैंने प्रतिपल निज प्राणों पर परस किसी का पाया