भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

285 bytes removed, 20:21, 27 अक्टूबर 2012
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2>
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">एक तू ही नहीं हैबाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!</div><div style="font-size:15px;"> कवि:[[साहिर लुधियानवीसूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"| साहिर लुधियानवीसूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]] </div>
</td>
</tr>
</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
हर चीज़ ज़माने की जहाँ पर थी वहीं हैबाँधो न नाव इस ठाँव,बंधु!एक तू ही नहीं हैपूछेगा सारा गाँव, बंधु!
नज़रें भी यह घाट वही और नज़ारे भी वही हैंजिस पर हँसकर,ख़ामोश फ़ज़ाओं के इशारे भी वही हैंवह कभी नहाती थी धँसकर,कहने को तो सब कुछ हैआँखें रह जाती थीं फँसकर, मगर कुछ भी नहीं हैकँपते थे दोनों पाँव बंधु!
हर अश्क में खोई हुई ख़ुशियों की झलक हैवह हँसी बहुत कुछ कहती थी,हर साँस फिर भी अपने में बीती हुई घड़ियों की कसक हैतू चाहे कहीं भी होरहती थी, तेरा दर्द यहीं है हसरत नहींसबकी सुनती थी, अरमान नहींसहती थी, आस नहीं हैयादों के सिवा कुछ भी मेरे पास नहीं हैयादें भी रहें या न रहें किसको यक़ीं हैदेती थी सबके दाँव, बंधु!
</pre></center></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,720
edits