भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
प्रान लए जम जात, मूढ़-मति देखत जननी-तात ।
छन इक माहिं कोटि जुग बीतत, नर की केतिक बात ।
यह जग-प्रीति सुवा-सेमर ज्यों, चाखत ही उड़ि जात ।
जमकैं फंद पर्यौ नहिं जब लगि, चरननि किन लपटात ?