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|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
}}
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हैं साथ इस खातिर कि दोनों को रवानी चाहिये
पानी को धरती चाहिए धरती को पानी चाहिये
ऐ जाने वाले कुछ अलग तस्वीर देता जा तेरी
सब कुछ भुलाने के लिए कुछ तो निशानी चाहिये
उस पीर को परबत हुए काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नई इकतर्जुमानीचाहिये
नाज़ुक बयाँ दे कर मिलेगा उलझनों का हल नहीं
हल चाहिये तो फिर बयाँ में सचबयानी चाहिये
हम जीतने के ख़्वाब आँखों में सजायें किस तरह
लश्कर को राजा चाहिए राजा को रानी चाहिये
कुछ भी नहीं ऐसा कि जो उसने हमें बख़्शा नहीं
हाजिर है सब कुछ सामने बस बुद्धिमानी चाहिये
लाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हें
हर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं
इक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये
</poem>
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हैं साथ इस खातिर कि दोनों को रवानी चाहिये
पानी को धरती चाहिए धरती को पानी चाहिये
ऐ जाने वाले कुछ अलग तस्वीर देता जा तेरी
सब कुछ भुलाने के लिए कुछ तो निशानी चाहिये
उस पीर को परबत हुए काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नई इकतर्जुमानीचाहिये
नाज़ुक बयाँ दे कर मिलेगा उलझनों का हल नहीं
हल चाहिये तो फिर बयाँ में सचबयानी चाहिये
हम जीतने के ख़्वाब आँखों में सजायें किस तरह
लश्कर को राजा चाहिए राजा को रानी चाहिये
कुछ भी नहीं ऐसा कि जो उसने हमें बख़्शा नहीं
हाजिर है सब कुछ सामने बस बुद्धिमानी चाहिये
लाजिम है ढूँढें और फिर बरतें सलीक़े से उन्हें
हर लफ्ज़ को हर दौर में अपनी कहानी चाहिये
इस दौर के बच्चे नवाबों से ज़रा भी कम नहीं
इक पीकदानी इन के हाथों में थमानी चाहिये
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