भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
920 bytes added,
17:15, 20 दिसम्बर 2012
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2>
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">धूप वाले दिनचीरहरण करती है दिल्ली</div><div style="font-size:15px;"> कवि:[[देवेन्द्र आर्यजयकृष्ण राय तुषार| देवेन्द्र आर्यजयकृष्ण राय तुषार]] </div>
</td>
</tr>
</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
शीत ने कितने चुभोएयमुना में कोहरे के पिनगर चुल्लू भर अलगनी पर टँक गएपानी हो दिल्ली डूब मरो ।लो, धूपवाले दिन स्याह ... चाँदनी चौक हो गया नादिरशाहो तनिक डरो ।
ठुमकती फिरती वसंती हवानहीं राजधानी के उपवन मेंलायक चीरहरण करती है दिल्ली,गीत गातीं कोयलेंभारत माँ मदमस्त मधुबन की छवि दुनिया में ।फूल पर मधुमास करता नृत्यशर्मसार करती है दिल्ली,ता धिन-धिनसंविधान की अलगनी पर टँक गएक़समें लोखाने वालो, धूपवाले दिन कुछ तो अब सुधरो ।
पीतवसना घूमती सरसोंतालिबान में,तुझमें क्या है लगा पाँखेंफ़र्क सोचकर हमें बताओ,मस्त अलसी की लजातीजो भी नीलमणि आँखें ।गुनहगार हैं उनको ताल में धर पाँवफाँसी के तख़्ते तक लाओ,उतरे चाँदनी पल छिनदुनिया को अलगनी पर टँक गएक्या मुँह लो, धूपवाले दिन दिखलाओगे नामर्दो शर्म करो ।
दूर वंशी के स्वरों मेंक्राँति करो गूँजता काननअब अत्याचारी महलों की दीवार ढहा दो,वर्जना टूटीकठपुतली खिला सौ चाह परधान देश का आनन ।श्याम को श्यामा पुकारेउसको मौला राह दिखा दो,साँस भर गिन-गिनभ्रष्टाचारी अलगनी पर टँक गएलो, धूपवाले हाक़िम दिन भर गाल बजाते उन्हें धरो ।
गोरख पांडेय का
अनुयायी
चुप क्यों है मजनू का टीला,
आसमान की
झुकी निगाहें
हुआ शर्म से चेहरा पीला,
इस समाज
का चेहरा बदलो
नुक्कड़ नाटक बन्द करो ।
गद्दी का
गुनाह है इतना
उस पर बैठी बूढी अम्मा,
दु:शासन हो
गया प्रशासन
पुलिस-तन्त्र हो गया निकम्मा ,
कुर्सी
बची रहेगी केवल
इटली का गुणगान करो ।
</pre></center></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader