भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
अनुराग में प्रेम है त्याग में प्रेम है,
भाग्य में प्रेम है ये ही तो नेम है।
ग्यान ही प्रेम है ध्यान ही प्रेम है,
राम ही प्रेम है प्रेम ही प्रेम है।
शिवदीन है प्रेम कहो मन में,
जन में तन में कुशलानंद क्षेम है।
परवाह करो न डरो न मरो,
मन प्रेम करो शुभ टेम ही टेम है|
</poem>